राजीव गांधी के 5 कदम, जिनकी वजह से आज भी होती है आलोचना

rajiv gandhi: भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी का कार्यकाल कई मायनों में ऐतिहासिक माना जाता है। उन्होंने तकनीकी और शिक्षा के क्षेत्र में कई अहम पहल कीं, लेकिन उनके कुछ राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णय ऐसे रहे जिनकी आलोचना आज भी की जाती है। उनके समर्थक मानते हैं कि वह दूरदर्शी नेता थे, लेकिन आलोचक कहते हैं कि कुछ कदमों ने भारत की राजनीति और समाज को लंबे समय तक प्रभावित किया। आइए जानते हैं वे पाँच प्रमुख फैसले और कदम, जिन पर आज भी बहस होती रहती है।
शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना
1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो नामक मुस्लिम महिला के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला दिया था, जिसमें कहा गया था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भरण-पोषण का अधिकार है। लेकिन मुस्लिम समुदाय के कुछ संगठनों के दबाव में राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून बनाकर इस फैसले को पलट दिया। आलोचकों का कहना है कि यह कदम धर्मनिरपेक्षता से समझौता था और अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा था। इस फैसले ने महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को पीछे धकेल दिया और राजीव गांधी को आज भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
राम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद विवाद में ‘शिलान्यास’ की इजाजत
शाह बानो केस में मुस्लिम पक्ष को खुश करने के बाद, राजीव गांधी ने हिंदू समुदाय को संतुष्ट करने की कोशिश में अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर ‘शिलान्यास’ की इजाजत दे दी। इस कदम को धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति की शुरुआत माना जाता है। आलोचक कहते हैं कि इससे साम्प्रदायिक तनाव और बढ़ा और अंततः बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी घटनाओं की नींव इसी दौर में रखी गई। राजीव गांधी का यह कदम आज भी उन्हें दोहरे चरित्र वाली राजनीति के लिए याद दिलाता है।
श्रीलंका में भारतीय शांति सेना (IPKF) भेजना
राजीव गांधी ने 1987 में श्रीलंका में शांति स्थापित करने के लिए भारतीय सेना को भेजा। इसका उद्देश्य लिट्टे और श्रीलंका सरकार के बीच संघर्ष को रोकना था। लेकिन भारतीय सेना को वहाँ स्थानीय विरोध और हिंसा का सामना करना पड़ा। हजारों भारतीय सैनिक मारे गए और आखिरकार यह मिशन असफल साबित हुआ। इसे राजीव गांधी का जल्दबाज़ी में लिया गया गलत फैसला माना जाता है। आलोचक कहते हैं कि इस कदम ने भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुँचाया और सैनिकों की जानें व्यर्थ गईं।
बोफोर्स घोटाले की छाया
राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप सौदे में रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप लगे। हालांकि राजीव गांधी की व्यक्तिगत भूमिका सिद्ध नहीं हो पाई, लेकिन इस घोटाले ने उनकी ईमानदार छवि को गहरा आघात पहुँचाया। बोफोर्स घोटाले की गूंज ने उनकी राजनीतिक साख को कमज़ोर किया और 1989 के चुनाव में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना। आज भी बोफोर्स का नाम आते ही राजीव गांधी का ज़िक्र होता है और उनकी छवि पर दाग के रूप में यह कायम है।
1984 के सिख दंगों पर रुख
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में भयंकर सिख विरोधी दंगे हुए। इन दंगों में हजारों निर्दोष सिखों की हत्या हुई। राजीव गांधी ने उस समय यह विवादित बयान दिया जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है।” इस कथन को दंगों को जायज़ ठहराने वाला माना गया। आलोचकों का मानना है कि उनकी सरकार ने दंगों को रोकने में ढिलाई बरती और दोषियों पर तुरंत कार्रवाई नहीं की। यही वजह है कि आज भी सिख समुदाय और मानवाधिकार संगठन इस मुद्दे पर उन्हें कटघरे में खड़ा करते हैं।